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Safar ki Dua | सफर की दुआ:
سبحْنَ الَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ ، وَ إِنَّا إِلَى رَبِّنَا لَمُنْقَلِبُونَ
सुब्हानल्लजी सख्ख-र-लना हाज़ा वमा कुन्ना लहू मुकरिनीन, व इन्ना इला रब्बिना लमुन्कलिबून 1
वजाहत :
1. कुरआन ने कश्ती (स्टीमर) के सफर के लिए भी यही दुआ बताई है, देखिए सूरह जुखरूफ आयत 12, 13 और 14
2. हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने कश्ती पर सवार होकर यह दुआ पढ़ी थी। बिस्मिल्लाहि मजरिहा व मुर साहा इन्न रब्बी ल- गफूरुर्रहीम (सूरह हूद आयत 41)
3. सफर चाहे किसी भी सवारी का हो, सफर की दुआएँ ज़रूर पढ़ लेनी चाहिए।
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सवारी पर बैठने के बाद की दुआ:
الله اكبر ، الله اكبر ، الله اكبر
سُبحنَ الَّذِى سَخَّرَ لَنَا هَذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ وَ إِنَّا إِلَى رَبِّنَا لَمُنْقَلِبُونَ اللَّهُمْ إِنَّا نَسْتَلْكَ فِي سَفَرِنَا هَذَا الْبِرِّ وَالتَّقْوَى، وَ مِنَ العَمَلِ مَا تَرْضَى اللَّهُم هَوَنُ عَلَيْنَا سَفَرَنَا هَذَا، وَاطْوِ عَنَّا بُعْدَهُ، اللَّهُمَّ أَنْتَ الصَّاحِبُ فِي السِّفَرِ وَالْخَلِيفَةُ فِي الْأَهْلِ اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ وَعُنَاءِ السِّفَرِ، وَكَابَةِ الْمَنْظَرِ، وَسُوءِ الْمُنْقَلَبِ فِي الْمَالِ وَالْأَهلِ
अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, सुब्हानल्लज़ी सख्ख-र-लना हाज़ा वमा कुन्ना लहू मुकरिनीन, व इन्ना इला रब्बिना लमुन्कलिबन 2
अल्लाहुम्म इन्ना नस्सलुक फि स-फ-रिना हाज़ल बिर्र, व-त्तकवा व-मिनल अ-मलि मा तरज़ा अल्लाहुम्म हव्विन अलैना स- फ-रना हाज़ा वत्विअन्ना बुअदहा, अल्लाहुम्म अन्तरसाहिबू फिस्सफरि वल्ख़लीफतु फिल अहलि, अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबि क मिंव्व साइस्सफरि, व आबतिल मज़रि, वसूइल मुन्कलबि फिल मालि वल अहल. 3
तर्जुमा : अल्लाह सब से बड़ा है, अल्लाह सब से बड़ा है, अल्लाह सब से बड़ा है, पाक है वह जात जिस ने इस सवारी को हमारे ताबेअ (काबू) में कर दिया, हालां कि हम इस को काबू में करने वाले नहीं थे और बेशक हम अपने रब की तरफ ज़रूर लौटने वाले हैं, ऐ अल्लाह हम इस सफर में नेकी और तकवा और तेरी रज़ामन्दी के काम का सवाल करते हैं, ऐ अल्लाह हम पर हमारे इस सफर को आसान कर दे और इस की दूरी को समेट दे, ऐ अल्लाह तू सफर में हमारा साथी और घर में हमारा निगेहबान (हिफाज़त करने वाला) है, ऐ अल्लाह मैं तुझ से पनाह चाहता हूँ सफर की तकलीफ और बुरे मन्ज़र से और माल और औलाद में बुरी हालत में वापस आने से।
वजाहत : कुरआन ने सफर के मौके पर सूरह जुखरूफ की आयत 13 और 14 पढ़ने की नसीहत की है, रसूलुल्लाह ﷺ सफर में इन आयतों (दुआओं) को पढ़ते और साथ में दूसरी दुआओं को भी पढ़ते थे।
सवारी परेशान करे तब की दुआ:
بِسمِ اللهِ
बिस्मिल्लाह 4
फजीलत : रसूलुल्लाह ﷺ की सवारी ( जानवर ) ने शरारत की तो आप के पीछे बैठे हुए सहाबी ने कहा ‘मरे शैतान’ उस वक़्त आप ﷺ ने कहा ऐसा बोलने से शैतान खुश होकर एक मकान की तरह बड़ा हो जाता है । इस लिए ‘बिस्मिल्लाह’ बोला करो, इस से शैतान सुकड़कर मख्खी की तरह हो जाता है। 5
ऊँचाई पर चढ़ने की दुआ:
الله أكبر.
अल्लाहु अकबर 6
तर्जुमा : अल्लाह सब से बड़ा है।
वज़ाहतः सहाबा ऊँची जगह चढ़ते तो ‘अल्लाहु अकबर’ कहते।
नीचे उतरने की दुआ:
سُبْحَانَ اللهِ
सुब्हानल्लाह 7
तर्जुमा : अल्लाह पाक है।
वज़ाहत : सहाबा नीची जगह में उतरते तो ‘सुब्हानल्लाह’ कहते।
सफर में ठहरने की दुआ:
اَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللهِ التَّامَّاتِ مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ
अऊजु बि-कलिमातिल्लाहि त्ताम्माति मिन शर्रि मा ख़लक 8
तर्जुमा : मैं पनाह माँगता हूँ अल्लाह के पूरे कलिमों के ज़रीए, तमाम मख़्लूक की बुराई से ।
फाइदा : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया जो शख़्स किसी मंज़ील (कोई जगह) उतरे और यह दुआ पढ़े तो उसको कोई चीज़ नुकसान नहीं पहुँचा सकती यहाँ तक के वह वहाँ से आगे बढ़ जाए ।
सफर से वापसी की दुआ:
لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ ، لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ، وَ لَهُ الْحَمدُ، وَهُوَ عَلى كُلّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ايْبُونَ ، تَائِبُونَ ، عَابِدُونَ ، سَاحِدُونَ لِرَبِّنَا حَامِدُونَ ، صَدَقَ
الله وَعْدَهُ ، وَنَصَرَ عَبُدَهُ، وَهَزَمَ الْأَحْزَابَ وَحْدَهُ
ला इलाह इल्लल्लाहु, वहदहू ला शरीक लहु, लहुल मुल्क-व-लहुल हम्दु, वहु-व अला कुल्लि शैइन क़दीर, आइबू–न, ताइबू-न आबिदू-न, साजिदू-न, लिरब्बिना हामिदू-न सदकल्लाहु वअदहु व-न-स-र अब्दहु व ह-ज़-मल अहज़ा – ब वहदह 9
तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं, वह अकेला है, कोई उसका शरीक नहीं, उसी का मुल्क है, और उसी के लिए हम्द है।
और वह हर चीज़ पर कादिर है, हम लौटने वाले हैं, तौबाह करने वाले हैं, इबादत करने वाले हैं, सजदह करने वाले हैं, अपने रब की तारीफ करने वाले हैं अल्लाह ने अपना वादा सच कर दिखाया और अपने बन्दे की मदद फरमाई और उस ने अकेले जमाअतों को शिकस्त (हार) दी ।
मुसाफिर को रूख़्सत (विदा) करने की दुआ:
اسْتَودِعُ اللهَ دِينَكَ ، وَ أَمَانَتَكَ وَ خَوَاتِيمَ عَمَلِكَ
अस्तव दिउल्ला – ह दीनक, वअमा-न-त-क, व ख़वाती – म अ-म-लिक. 10(सहीह)
तर्जुमा: मैं तेरा दीन और तेरी अमानत और तेरा आख़री अमल अल्लाह की हिफाज़त में देता हूँ ।
मुसाफिर को रूख़्सत (विदा) करने के बाद की दुआ:
اللَّهُمَّ اطْوِ لَهُ الْأَرْضَ وَ هَوَنُ عَلَيْهِ السَّفَرَ
अल्लाहुम्मत्वि लहुल अर-ज़, वहव्विन अलैहिस्सफर 11 (हसन)
तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! उसके लिए ज़मीन समेट दे और उस पर सफर आसान कर दे।
वज़ाहत : तिर्मिज़ी के दूसरे नुस्ख़ह में ‘अत्वि लहुल अरज़’ के बजाए ‘अत्वि लहुल बुअद है।
- सूरह जुलुफ : आयत 13 और 14 ↩︎
- सूरह जुखरूफ : आयत 13 और 14 ↩︎
- सहीह मुस्लिम : किताबुल हज ( 3 / 370 ) ↩︎
- सुनन अबीदाउद : किताबुल अदब (4982) ↩︎
- सहीह सुनन अबी दाऊद : किताबुल अदब (4982) ↩︎
- सहीह बुख़ारी : किताबुल जिहाद (2 / 147) ↩︎
- सहीह बुख़ारी : किताबुल जिहाद ( 2 / 147 ) ↩︎
- सहीह मुस्लिम : किताबुज्ज़िक्र (6/295) ↩︎
- सहीह मुस्लिम : किताबुल हज . ( 3 / 371 ) ↩︎
- सहीह सुननुत्तिर्मिज़ी लिलअल्बानी : किताबुददभुवात ( 3 / 3443) ↩︎
- सहीह सुननुत्तिर्मिज़ी लिलअल्बानी : किताबुददअवात (3 / 3445 ) ↩︎