मौत, जनाजे और दफन की दुआएँ

Namaze Janazah aur Dafan ki Duaayein

इमांन पर खात्मे की दुआ:

اللَّهُمْ أَحْيِنِي مَا كَانَتِ الْحَيوةُ خَيْراً لَّى ، وَ تَوَفَّنِي إِذَا كَانَتِ الْوَفَاةُ

अल्लाहुम्म अयिनी मा कानतिल हयातु ख़ैरल्ली, व-तव- फनी इज़ा कातिल वफातु खैरल्ली. 1

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मुझे उस वक़्त तक ज़िन्दा रख जब तक मेरे लिए ज़िन्दगी बेहतर हो और मुझे उस वक़्त वफात दे जब मेरे लिए वफात बेहतर हो। 

वजाहत : रसूलुल्लाह ﷺ ने मौत की आरज़ू करने से मना फरमाया है। इसी लिए किसी शिद्दत भरी आफत और मुसीबत के वक़्त मौत माँगनी हो तो यह दुआ पढ़नी चाहीए।

मौत के वक़्त की दुआएँ :

اللهُمَّ اغْفِرْ لِي، وَارْحَمْنِي، وَالْحِقْنِي بِالرِّفِيقِ الْأَعْلَى

1. अल्लाहुम्मग्फिरली, वरहम्नी, वअल्हिकनी, बिर्रफीकिल अअला. 2

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मेरी मग्फिरत फरमा और मुझ पर रहम फरमा और मुझे रफीके अला (ऊँचे दोस्त) से मिला दे।


لا إله إلا الله

2. ला इलाह इल्लल्लाह 3 (सहीह)

तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं।

फजीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया जिस का आख़री कलिमह “ला इलाह इल्लल्लाह” होगा वह जन्नत में दाख़िल होगा।

वजाहत : मौत के वक़्त सूरह यासीन पढ़ना । इस हदीस को अल्लामा अल्बानीने ज़ईफ कहा है। सुनन अबी दाऊद : किताबुल जनाइज़ (3121)


मरने वाले को तल्कीन (नसीहत) की दुआ:

لا إله إلا الله

ला इलाह इल्लल्लाह 4

तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं।

फज़ीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया जिस का आख़री कलिमह “ला इलाह इल्लल्लाह” होगा वह जन्नत में दाख़िल होगा। 5 (सहीह)

वजाहत : मौत का वक़्त बड़ी सख़्ती का होता है, इस लिए सोच समझकर बड़े ही अच्छे अंदाज़ में मरने वाले को इस कलिमह की तल्कीन करनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो के मरने वाला तकलीफ की वजह से कलिमह का इन्कार कर दे। अल्लाह हमें आख़री वक़्त कलिमह नसीब फरमाए। आमीन। 


मौत की ख़बर सुन कर दुआ:

إِنَّا لِلّهِ وَإِنَّـا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ‎
اللَّهُمَّ أجُرْنِي فِي مُصِيْبَتي، وأخْلِفْ لِي خَيْراً مِنْهَا
इन लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन. 6
अल्लाहुम्म अजिरनी फी मुसीबत वख़्लुफ्ली खैरम मिन्हा. 7

तर्जुमा : बेशक हम अल्लाह के लिए हैं और बेशक हम उसी की तरफ लौटने वाले हैं। ऐ अल्लाह ! मुझे अजरो सवाब दे मेरी मुसीबत में और मुझे इस से बेहतर बदला दे।

फजीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया जिस को मुसीबत पहुँचे और यह दुआ पढ़े तो अल्लाह उसे उस से भी बेहतर बदला देगा।


तअज़िय्यत की दुआ (सब्र की नसीहत)

إِنَّ لِلَّهِ مَا اَخَذَ ، وَلَهُ مَا أَعْطَى، وَ كُلُّ شَيْءٍ عِنْدَهُ بِأَجَلٍ مُّسَمًّى

इन्न-लिल्लाहि मा अ-ख़-ज़, वलहु मा अअता, वकुल्लु इन शैंइन इन्दहु बि अ-ज-लिम मुसम्मा फल-तस्बिर वल्तहतसिब 8

तर्जुमा : बेशक अल्लाह ही का है जो उसने लिया और उसी का है जो उसने दिया, और उसके पास हर चीज़ मुकर्रर वक़्त के साथ है आप सब्र कीजिए और सवाब की उम्मीद रखिए।

नमाज़े जनाज़ह की फजीलत:

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया जो जनाज़ह में हाज़िर हुआ और उसने जनाज़ह की नमाज़ पढ़ी तो उस को एक किरात (ओहद पहाड़) बराबर सवाब मिलेगा। 9


नमाज़े जनाज़ह का तरीका:

1. मय्यित अगर मर्द की हो तो इमाम को उस के सर के पास खड़ा होना चाहिए और अगर मय्यित औरत की हो तो इमाम को उस के बीच के हिस्सा के पास खड़ा होना चाहिए। 10 (सहीह)

2. पहली तकबीर के बाद सूरह फातिहा और कोई सूरह, दूसरी तकबीर के बाद दरुद, तीसरी तकबीर के बाद मय्यित के लिए दुआ और चौथी तकबीर के बाद सलाम फेरना चाहिए। 11 (सहीह)


नमाज़े जनाज़ह की दुआएँ:

اللَّهُمَّ اغْفِرُ لحَيْنَا وَمَيِّتِنَا، وَشَاهِدِنَا وَغَائِبِنَا وَصَغِيْرِنَا وَكَبِيرِنَا، وَذَكَرِنَا وَ أَنْتَانَا اللَّهُمَّ مَنْ أَحْيَيْتَهُ مِنَّا فَأَحْيِهِ عَلَى الْإِسْلَامِ، وَمَنْ تَوَفَّيْتَهُ مِنَّا فَتَوَفَّهُ عَلَى : يَمَانِ، اللهم لا تَحْرِمُنَا أَجْرَهُ وَلَا تُضِلَّنَا بَعْدَهُ 

1. अल्लाहुम्मग्फिर लिहय्यिना वमय्यितिना, व-शाहिदिना व-गाइबिना व-सगीरिना व-कबीरिना, व-ज-क-रिना वउन्साना, अल्लाहुम्म मन अहयय्तहू मिन्ना फ- अहयिही अलल इस्लाम, वमन् तवफ्फयतहु मिन्ना फ-त- वफ्फहू अललईमान, अल्लाहुम्म ला – तहरिमना अजरहू वलातुजिल्लना बअदह 12 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! तू बख़्श दे हमारे ज़िन्दों और हमारे मुर्दों को और हमारे हाज़िर और हमारे गाइब को और हमारे छोटे और हमारे बड़े को, और हमारे मर्द और हमारी औरतों को, ऐ अल्लाह ! हम में से जिस को तू ज़िन्दा रख तो उसे इस्लाम पर जिन्दा रख और हम में से जिस को तू मौत दे तो उसे ईमान पर मौत दे, ऐ अल्लाह ! इस के सवाब से हमें महरुम न करना और इस के बाद हम को गुमराह न करना।


اَللّهُمَّ اغْفِرُ لَهُ وَارْحَمْهُ وَعَافِهِ وَاعْفُ عَنْهُ، وَاكْرِمُ نُزُلَهُ، وَوَسِعُ مَدْخَلَهُ، وَاغْسِلْهُ بِالْمَاءِ وَالثَّلْجِ وَالْبَرَدِ، وَنَقِهِ مِنَ الْخَطَايَا كَمَا نَقَّيْتَ الثّوبَ الْأَبْيَضَ مِنَ الدَّنَسِ، وَابَدِلْهُ دَاراً خَيْراً مِّنْ دَارِهِ، وَ أَهْلًا خَيْراً مِّنْ أَهْلِهِ، وَ زَوْجاً خَيْراً مِنْ زَوْجِهِ، وَ اَدْخِلُهُ الْجَنَّةَ وَأَعِذْهُ مِنْ عَذَابِ

الْقَبْرِ وَ مِنْ عَذَابِ النَّارِ 

2. अल्लाहुम्मग्फिरलहू वरहम्हू व आफिहि वअफुअन्हु, व अकरिम नुजुलह, व वस्सीअ  मद-ख़-लहु वग्सिल्हू बिल्माइ वस्सल्जि वल-ब-र-द, वनक्किही मिनल ख़ताया कमा नक- कय्-तस्सौबल अब्य-ज़, मिनद दनसि, व अब्दिल्हु दारन ख़ैरम मिन दारिह, व-अह-लन ख़ैरम मिन अह-लिह, व जौजन ख़ैरम मिन जौजिह, व अदखील्हुल जन्न-त, व-अइजहु मिन अज़ाबिल क़ब्री वमिन अज़ाबिन्नार 13

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! इस की मग्फिरत फरमा और इस पर रहम फरमा और इस को आफियत दे और इस के गुनाह माफ फरमा और इस की मेहमानी इज़्ज़त से फरमा और इस की कब्र को चौड़ी कर दे और इस को पानी, बर्फ और ओले से नेहला और इस को गुनाहों से पाक कर जैसा सफेद कपड़ा मैल से पाक होता है और इस के घर से अच्छा घर और इस के घर वालों से अच्छे घर वाले और इस के जोड़े से अच्छा जोड़ा इस को बदले में दे और इस को जन्नत में दाख़िल फरमा और इस को कब्र के अज़ाब से और आग के अज़ाब से बचा।

फज़ीलत : हज़रत औफ बिन मालिक (रज़ि) जो इस हदीस के रावी हैं, कहते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने एक जनाज़ह में यह दुआ पढ़ी तो मुझे यह आरज़ू हुई के काश यह मेरा जनाज़ह होता।


बच्चे के जनाज़ह की दुआ:

اللَّهُمَّ اجْعَلْهُ لَنَا سَلَفاً وفَرَطَا وَّ أَجْراً

अल्लाहुम्मज्-अल्हु-लना स-ल-फंव् व फ-र-तंव् व अजरा. 14

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! इस को आगे जाकर सामान तैयार करने वाला और आगे जाने वाला और सवाब का ज़रीया बना।

वज़ाहत : हज़रत हसन बसरी (रह.) बच्चों के जनाज़ह पर यह दुआ पढ़ते थे।


कब्रस्तान में दाख़िल होने की दुआ:

السَّلَامُ عَلَيْكُمْ أَهْلَ الدِّيَارِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُسْلِمِينَ، وَ إِنَّا إِن شَاءَ اللهُ بِكُمْ لَلَاحِقُونَ، نَسْأَلُ اللهَ لَنَا وَلَكُمُ الْعَافِيَةَ  

अस्सलामु अलैकुम अह-लददियारि मिनल मुअमिनीन वल-मुस्लिमीन व- इन्ना इन्शाअल्लाहु बिकुम ल-लाहिकून नस्लुल्लाह, लना-व-ल कुमुल्आफियह. 15

तर्जुमा: तुम पर सलामती हो, ऐ इन घरों में रहने वालो । जो मोमिनों और मुसलमानों में से हैं और बेशक हम अगर अल्लाह ने चाहा तो तुम से ज़रूर मिलने वाले हैं हम अल्लाह से हमारे लिए और तुम्हारे लिए आफियत का सवाल करते हैं।


मय्यत को कब्र में रखते वक़्त की दुआ: (कोई एक पढ़ें)

بِسمِ اللهِ وَ عَلَى مِلَّةِ رَسُولِ اللَّهِ 

بِسمِ اللهِ وَ عَلَى سُنَّةِ رَسُولِ اللَّهِ  

1. बिस्मिल्लाहि व अला मिल्लति रसुलिल्लाह 16 (सहीह)
2. बिस्मिल्लाहि व अला सुन्नति रसूलिल्लाह 17 (सहीह) 

तर्जुमा : अल्लाह के नाम से और उस के रसूल के तरीके पर।वजाहत : मय्यित को दफन करते वक़्त तीन लप (मुट्ठीभर) मट्टी डालनी चाहिए मगर उस वक़्त पहली लप पर मिन्हा खलकनाकुम और दूसरी लप पर व-फीहा-नईदुकुम और तीसरी लप पर व-मिन्हा-नुखरिजुकुम-तारतन-उखरा  सूरह ताहा आयत ( 55 ) पढ़ना ज़ईफ रिवायत है।


  1. सहीह बुख़ारी : किताबुल मर्ज़ा (3 / 306) ↩︎
  2. सहीह बुख़ारी किताबुल मगाज़ी (2 / 763) ↩︎
  3. सुनन अबी दाऊद : किताबुल जनाइज़ ( 3116) ↩︎
  4. सहीह मुस्लिम : किताबुल जनाइज़ (2 / 364) ↩︎
  5. सुननअबी दाऊद : किताबुल जनाइज़ ( 3116) ↩︎
  6. सूरह बक़रह : 156 ↩︎
  7. सहीह मुस्लिम : किताबुल जनाइज़ (2 / 364 ) ↩︎
  8. सहीह मुस्लिम : किताबुल जनाइज़ ( 2 / 367 ) ↩︎
  9. सहीह मुस्लिम : किताबुल जनाइज़ (2 / 384 ) ↩︎
  10. सहीह तिर्मिज़ी : किताबुल जनाइज़ (1 / 1034 ) ↩︎
  11. अहकामुल जनाइज़ लिल अल्बानी (119 से 123 ) ↩︎
  12. सुनन इब्ने माजह: किताबुल जनाइज़ (1498) ↩︎
  13. सहीह मुस्लिम : किताबुल जनाइज़ (2 / 394 ) ↩︎
  14. मुख़्तसर सहीह अल्इं मामुल बुख़ारी लिल अल्बानी : किताबुल जनाइज़ (267) ↩︎
  15. सहीह मुस्लिम : किताबुल जनाइज़ (2/402) ↩︎
  16. सुनन इब्ने माजह: किताबुल जनाइज़ (1550 ) ↩︎
  17. सुनन इब्ने माजह: किताबुल जनाइज़ (1550 ) ↩︎