अज़ान | इकहरी और दोहरी अज़ान | अज़ान का जवाब

Ekhari aur Dohri Azan

अज़ान, इकहरी और दोहरी अज़ान, अज़ान का जवाब, अज़ान के बाद की दुआ, फजर की अज़ान में “हय्य अलल्फलाह” कहने के बाद की दुआ, ठंडी और बारिश की रात जब के लोगों का मस्जिद में आना मुश्किल हो तो यह कहें, इकहरी और दोहरी इकामत (तकबीर)

इकहरी और दोहरी अज़ान

इकहरी अज़ान 

( जिसके पंद्रह ( 15 ) कलिमात हैं )

अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर
अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर

तर्जुमा : अल्लाह सब से बड़ा है, अल्लाह सब से बड़ा है। 

अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाह
अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाह

तर्जुमा : मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह के सिवा कोई माबूदे – बरहक (सच्चा परस्तिश के लाइक) नहीं।

अश्हदु अन्न- मुहम्मदर रसूलुल्लाह
अश्हदु अन्न- मुहम्मदर रसूलुल्लाह

तर्जुमा: मैं गवाही देता हूँ के बेशक मुहम्मद ﷺ अल्लाह के रसूल हैं।

है-य अलस्सलाह
है-य अलस्सलाह

तर्जुमा : आओ नमाज़ के लिए।

है-य अलल् फलाह
है-य अलल् फलाह

तर्जुमा: आओ कामियाबी के लिए।

अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर

तर्जुमा : अल्लाह सब से बड़ा है, अल्लाह सब से बड़ा है।


ला-इला-ह इल्लल्लाह 1

तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई माबूदे बरहक़ नहीं ।

फजीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया : अज़ान और पहली सफ का सवाब लोगों को मालूम होता तो वह उसके लिए क़ुरआ-अंदाज़ी करते यानी चिठ्ठी डालते ।  2


दोहरी अज़ान: 

( जिसके उन्नीस ( 19 ) कलिमात हैं)

वज़ाहत : दोहरी अज़ान इकहरी अज़ान ही की तरह है, इस में सिर्फ फर्क यह है के शहादतैन के कलिमात को पहली बार आहिस्ता आवाज़ से पढ़कर फिर दूसरी बार कलिमाते – शहादतैन को ज़ोर से पढ़ते हुए अज़ान पूरी करना चाहिए । 3

शहादतैन के कलिमात यह हैं : 

अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाह
अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाह
अश्हदु अन्न- मुहम्मदर रसूलुल्लाह
अश्हदु अन्न- मुहम्मदर रसूलुल्लाह

फजर की अज़ान में “हय्य अलल्फलाह” कहने के बाद यह कहें: 

फजर की अज़ान में दो बार है – हय्य अलल् फलाह कहने के बाद दो बार कहना चाहिए :

अस्सलातु ख़ैरूम मिनन्नौम 4

तर्जुमा: नमाज़ नींद से बेहतर है ।


ठंडी और बारिश की रात जब के लोगों का मस्जिद में आना मुश्किल हो तो कहें :

ठंडी और बारिश की रात जब के लोगों का मस्जिद में आना बहुत मुश्किल हो तो “हय्य अलल् फलाह” कहने के बजाए या पूरी अजान के बाद दो बार यह कलिमाह कहना चाहिए । 5

अस्सलातु फिर्रिहाल 6

तर्जुमा : नमाज़ अपने ठिकाने पर पढ़ लो।


अज़ान का जवाब

मुअज्ज़िन (अज़ान देने वाला) जो कलिमाह कहे सुनने वाला उसके जवाब में वही कलिमह कहे 7 सिर्फ ” हैय अलस्सलाह” और “हैय अलल् फलाह” के जवाब में यह कलिमाह कहे :

لَا حَولَ وَلَا قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ

ला हौ-ल वला कुव्व-त इल्ला बिल्लाह 8

तर्जुमा : बुराई से फिरने और नेकी की कुव्वत ( ताक़त ) अल्लाह की मदद के बगैर मुम्किन नहीं।

फजिलत: रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया : जिसने दिल से यकीन रख कर अज़ान का जवाब दिया तो वह जन्नत में दाख़िल होगा।


अज़ान के बाद की दुआ

वज़ाहत : अज़ान के बाद पहले दरूद शरीफ पढ़ना चाहिए। 9

दरूद शरीफ के बाद यह दुआ पढ़े :

اللهُم رَبِّ هَذِهِ الدَّعُوَةِ التَّامَّةِ، وَالصَّلوةِ الْقَائِمَةِ ،اتِ مُحَمَّدًا

الْوَسِيلَةَ وَالْفَضِيلَةَ ، وَابْعَثْهُ مَقَامًا مَّحْمُودَا إِلَّذِي وَعَدْتَهُ

1. अल्लाहुम्मा रबी हाजिहिद दवातीत ताम मह वस सलातील काइमाह आति मुहम्म्दानिल वसीलता वल फ़ज़ीलता वब अस हु मकामम महमूदा अल्लाजी व अत्तह। 10

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! इस पूरी अज़ान और काइम होने वाली नमाज़ के रब ! मुहम्मद ﷺ को वसीलह ( जन्नत का दर्जह) और फज़ीलत अता फरमा और उन्हें मक़ामे महमूद भेज जिस का तूने उनसे वादा किया है। 

फजीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया के जो अज़ान के बाद यह दुआ पढ़ेगा उसको क़ियामत के दिन मेरी शफाअत ज़रुर मिलेगी। 

इस के बाद यह दुआ पढ़े :

اَشْهَدُ اَنْ لا إِلَهَ إِلَّا اللهُ ، وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ ، وَأَنَّ مُحَمَّداً عَبْدُهُ وَ رَسُولُهُ، رَضِيتُ بِاللهِ رَبِّاً و بِمُحَمَّدٍ رَّسُولًا وَبِالْإِسْلَامِ دِيناً –

2. अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाहु वह्दहू ला शरी-क लहू व अन्न मुहम्मदन अब्दुहू वरसूलुह, रजीतु बिल्लाहि रब्बंव वबि मुहम्मदिर रसूलंव वबिल इस्लामि दीना।   11

तर्जुमा : मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह के सिवा कोई माबूदे बरहक (सच्चा परस्तिश के लाइक) नहीं और वह अकेला है उसका कोई शरीक नहीं और बेशक मुहम्मद ﷺ उसके बंदे और उसके रसूल हैं, मैं राज़ी हूँ अल्लाह के रब होने पर इस्लाम के दीन होने पर और मुहम्मद ﷺ के रसूल होने पर और।

फज़ीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया जो अज़ान के बाद यह दुआ पढ़ेगा उसके गुनाह माफ होंगे।

***

इकहरी और दोहरी इकामत (तकबीर)

इकहरी इकामत: 

( जिसके ग्यारह ( 11 ) कलिमात हैं)

अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर

तर्जुमा : अल्लाह सब से बड़ा है, अल्लाह सब से बड़ा है ।

अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाह

तर्जुमा : मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह के सिवा कोई माबूदे-बरहक ( सच्चा परस्तिश के लाइक) नहीं ।

अश्हदु अन्न- मुहम्मदर रसूलुल्लाह

तर्जुमा : मैं गवाही देता हूँ के बेशक मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं ।

है-य अलस्सलाह

तर्जुमा : आओ नमाज़ के लिए ।

है-य अलल् फलाह

तर्जुमा : आओ कामियाबी के लिए ।

कद कामतिस्सलाह, कद कामतिस्सलाह 

तर्जुमा: नमाज़ खड़ी हो गई ।

अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर

तर्जुमा : अल्लाह सब से बड़ा है, अल्लाह सब से बड़ा है ।

ला-इला-ह इल्लल्लाह 12

तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई माबूदे-बरहक़ नहीं ।


दुहरी इकामत: 

( जिसके सतरह ( 17 ) कलिमात हैं )

अल्लाहु अकबर (चार मर्तबह )
अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाह ( दो मर्तबह )
अश्हदु अन्न- मुहम्मदर रसूलुल्लाह (दो मर्तबह)
है-य अलस्सलाह (दो मर्तबह)
है-य अलल् फलाह (दो मर्तबह)
कद कामतिस्सलाह ( दो मर्तबह )
अल्लाहु अकबर ( दो मर्तबह )
ला-इला-ह इल्लल्लाह 13 ( एक मर्तबह)

इकहरी अज़ान के साथ इकहरी इकामत कहना मस्नून है। 14


दोहरी अज़ान के साथ दोहरी इकामत कहना मस्नून है ।  15


हज़रत बिलाल (रज़ि.) को इकहरी अज़ान और इकहरी इक़ामत का हुक्म दिया गया। 16

इक़ामत का जवाब अज़ान के जवाब ही की तरह देना चाहिए ।  17

  1. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (499) ↩︎
  2. सहीह बुख़ारी : किताबुल अज़ान (1/329) ↩︎
  3. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (503) ↩︎
  4. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (501) ↩︎
  5. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (1062 और 1066 ) ↩︎
  6. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (1060) ↩︎
  7. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात ( 2 / 14 ) ↩︎
  8. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात ( 2 / 14 ) ↩︎
  9. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात ( 2 / 14 ) ↩︎
  10. सहीह बुखारी : किताबुल अज़ान ( 1/328) ↩︎
  11. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात ( 2 / 15 ) ↩︎
  12. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (499) ↩︎
  13. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (502) ↩︎
  14. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (499) ↩︎
  15. सुनन अबी दाऊद: किताबुसलात (502) ↩︎
  16. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात ( 2 / 10 ) ↩︎
  17. इस हदीस के तहत फकूलु मिस्ल मा यकूलुल मुअज़ज़िनु – सहीह मुस्लिम किताबुस्सलात (२ / १४)
    वजाहत :कदका – मतिस्सलाह” के जवाब में ” अकामहल्लाहु व अदा-महा” कहना इस रिवायत को अल्लामा अल्बानी ने ज़ईफ कहा है। सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात ( 528 ) ↩︎