नमाज़ का सहीह तरीका

नमाज का सहीह तरीका | Namaz Padhne ka Tarika in Hindi

۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞

नमाज का तरीका क्या है ? कौनसी नमाज़ कितनी रकात होती है, नमाज़ की क्या शर्ते होती है, औरतों और मर्दो की नमाज़ में कोई फर्क होता है क्या इन तमाम बातो की जानकारी के लिए नमाज का तरीका | Namaz in Hindi इस पोस्ट का मुताला करते है।

1. नमाज़ की शर्ते

Namaz ka Tarika in Hindi: नमाज़ की कुछ शर्ते हैं। जिनका पूरा किये बिना नमाज़ नहीं हो सकती या सही नहीं मानी जा सकती। कुछ शर्तो का नमाज़ के लिए होना ज़रूरी है, तो कुछ शर्तो का नमाज़ के लिए पूरा किया जाना ज़रूरी है। तो कुछ शर्तो का नमाज़ पढ़ते वक्त होना ज़रूरी है, नमाज़ की कुल शर्ते कुछ इस तरह से है।

  1. बदन का पाक होना
  2. कपड़ो का पाक होना
  3. नमाज़ पढने की जगह का पाक होना
  4. बदन के सतर का छुपा हुआ होना
  5. नमाज़ का वक्त होना
  6. किबले की तरफ मुह होना
  7. नमाज़ की नियत यानि इरादा करना

ख़याल रहे की पाक होना और साफ होना दोनों अलग अलग चीज़े है। पाक होना शर्त है, साफ होना शर्त नहीं है। जैसे बदन, कपडा या जमीन नापाक चीजों से भरी हुवी ना हो. धुल मिट्टी की वजह से कहा जा सकता है की साफ़ नहीं है, लेकिन पाक तो बहरहाल है।

१. बदन का पाक होना

– नमाज़ पढने के लिए बदन पूरी तरह से पाक होना ज़रूरी है। बदन पर कोई नापाकी लगी नहीं होनी चाहिए. बदन पर कोई गंदगी लगी हो या नापाकी लगी हो तो वजू या गुस्ल कर के नमाज़ पढनी चाहिए।

२. कपड़ो का पाक होना

– नमाज़ पढने के लिए बदन पर पहना हुआ कपडा पूरी तरह से पाक होना ज़रूरी है। कपडे पर कोई नापाकी लगी नहीं होनी चाहिए. कपडे पर कोई गंदगी लगी हो या नापाकी लगी हो तो कपडा धो लेना चाहिए या दूसरा कपडा पहन कर नमाज़ पढ़ लेनी चाहिए।

३. नमाज़ पढने की जगह का पाक होना

– नमाज़ पढने के लिए जिस जगह पर नमाज पढ़ी जा रही हो वो जगह पूरी तरह से पाक होना ज़रूरी है। जगह पर अगर कोई गंदगी लगी हो या नापाकी लगी हो तो जगहधो लेनी चाहिए या दूसरी जगह नमाज़ पढ़ लेनी चाहिए।

४. बदन के सतर का छुपा हुआ होना

– नाफ़ के निचे से लेकर घुटनों तक के हिस्से को मर्द का सतर कहा जाता है। नमाज़ में मर्द का यह हिस्सा अगर दिख जाये तो नमाज़ सही नहीं मानी जा सकती.

५. नमाज़ का वक्त होना

– कोई भी नमाज़ पढने के लिए नमाज़ का वक़्त होना ज़रूरी है. वक्त से पहले कोई भी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती और वक़्त के बाद पढ़ी गयी नमाज़ कज़ा नमाज़ मानी जाएगी।

६. किबले की तरफ मुह होना

– नमाज़ क़िबला रुख होकर पढ़नी चाहिए। मस्जिद में तो इस बारे में फिकर करने की कोई बात नहीं होती, लेकिन अगर कहीं अकेले नमाज़ पढ़ रहे हो तो क़िबले की तरफ मुह करना याद रखे।

७. नमाज़ की नियत यानि इरादा करना

– नमाज पढ़ते वक़्त नमाज़ पढ़ें का इरादा करना चाहिए।


2. वजू का तरीका

नमाज़ के लिए वजू शर्त है। वजू के बिना आप नमाज़ नहीं पढ़ सकते। अगर पढेंगे तो वो सही नहीं मानी जाएगी। वजू का तरीका यह है की आप नमाज़ की लिए वजू का इरादा करे। और वजू शुरू करने से पहले बिस्मिल्लाह कहें. और इस तरह से वजू करे।

  1. कलाहियों तक हाथ धोंये
  2. कुल्ली करे
  3. नाक में पानी चढ़ाये
  4. चेहरा धोंये
  5. दाढ़ी में खिलाल करें
  6. दोनों हाथ कुहनियों तक धोंये
  7. एक बार सर का और कानों का मसाह करें
    (मसह का तरीका यह है की आप अपने हाथों को गिला कर के एक बार सर और दोनों कानों पर फेर लें। कानों को अंदर बाहर से अच्छी तरह साफ़ करे।)
  8. दोनों पांव टखनों तक धोंये।

यह वजू का तरीका है। इस तरीके से वजू करते वक्त हर हिस्सा कम से कम एक बार या ज़्यादा से ज़्यादा तीन बार धोया जा सकता है। लेकिन मसाह सिर्फ एक ही बार करना है। इस से ज़्यादा बार किसी अज़ा को धोने की इजाज़त नहीं है, क्योंकि वह पानी की बर्बादी मानी जाएगी और पानी की बर्बादी करने से अल्लाह के रसूल ने मना किया है।


3. गुस्ल का तरीका

अगर आपने अपने बीवी से सोहबत की है, या फिर रात में आपको अहेतलाम हुआ है, या आपने लम्बे अरसे से नहाया नहीं है तो आप को गुस्ल करना ज़रूरी है। ऐसी हालत में गुस्ल के बिना वजू नहीं किया सकता, गुस्ल का तरीका कुछ इस तरह है।

  1. दोनों हाथ कलाहियो तक धो लीजिये
  2. शर्मगाह पर पानी डाल कर धो लीजिये
  3. ठीक उसी तरह सारी चीज़ें कीजिये जैसे वजू में करते हैं
  4. कुल्ली कीजिये
  5. नाक में पानी डालिए
  6. और पुरे बदन पर सीधे और उलटे जानिब पानी डालिए
  7. सर धो लीजिये
  8. हाथ पांव धो लीजिये।

यह गुस्ल का तरीका है। याद रहे ठीक वजू की तरह गुस्ल में भी बदन के किसी भी हिस्से को ज़्यादा से ज़्यादा ३ ही बार धोया जा सकता है। क्योंकि पानी का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल इस्लाम में गैर पसंदीदा अमल माना गया है।


4. नियत का तरीका

नमाज़ की नियत का तरीका यह है की बस दिल में नमाज़ पढने का इरादा करे। आपका इरादा ही नमाज़ की नियत है। इस इरादे को खास किसी अल्फाज़ से बयान करना, जबान से पढना ज़रूरी नहीं। नियत के बारे में तफ्सीली जानकारी के लिए इस लिंक पे क्लिक करे।


5. अज़ान

अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर

अशहदु अल्लाह इलाहा इल्लला
अशहदु अल्लाह इलाहा इल्लला

अशहदु अन्न मुहम्मदुर्रसुल अल्लाह
अशहदु अन्न मुहम्मदुर्रसुल अल्लाह

हैंय्या अलस सल्लाह
हैंय्या अलस सल्लाह

हैंय्या अलल फलाह
हैंय्या अलल फलाह

अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर
ला इलाहा इल्ललाह

यह है वो अज़ान जो हम दिन में से पांच मर्तबा हर रोज सुनते है। जब हम यह अज़ान सुनते हैं, तब इसका जवाब देना हमपर लाजिम आता है और यह जवाब कैसे दिया जाये? बस वही बात दोहराई जाये जो अज़ान देने वाला कह रहा है। 

वो कहें अल्लाहु अकबर तो आप भी कहो अल्लाहु अकबर…. इसी तरह से पूरी अज़ान का जवाब दिया जाये तो बस ‘हैंय्या अलस सल्लाह’ और ‘हैंय्या अलल फलाह’ के जवाब में आप कहें दो ‘ला हौला वाला कुव्वता इल्ला बिल्लाह’

अज़ान के बाद की दुआ

“अल्लाहुम्मा रब्बा हाज़ीहिल दावती-त-ताम्मति वस्सलातिल कायिमति आती मुहम्मद नील वसिलता वल फ़ज़ीलता अब’असहू मक़ामम महमूद निल्ल्जी अ’अत्तहू”

यह दुआ अज़ान होने के बाद पढ़े. इसका मतलब है, “ऐ अल्लाह! ऐ इस पूरी दावत और खड़े होने वाली नमाज़ के रब! मुहम्मद (स.) को ख़ास नजदीकी और ख़ास फजीलत दे और उन्हें उस मकामे महमूद पर पहुंचा दे जिसका तूने उनसे वादा किया है, यकीनन तू वादा खिलाफी नहीं करता.” [ अज़ान के बाद की दुआ ]

अज़ान और इकामत के बिच के वक्त में दुआ करना बहेतर मना गया है। क्यूंकि अहादीस से मालूम होता है के अज़ान और इक़ामत के दरमियान दुआ रद्द नहीं होती [हदीस: मुसनदे अहमद 13357]


6. नमाज़ की रकाअत

सुन्नत से साबित नमाज़ की रकाअते।

सुन्नतें मौअक्कदा और फ़र्ज़ रकात

नमाज़ की रकाअत
नमाज़ की रकाअत
  1. नमाज़े फ़ज्र : दो सुन्नतें, दो फ़र्ज़। (नमाज़े फज़्र चार रकअतें हुईं)
  2. नमाज़े ज़ोहर : चार सुन्नतें, चार फ़र्ज़, दो सुन्नतें। (नमाज़े ज़ोहर दस रकअतें हुई)
  3. नमाज़े अस्र : चार फ़र्ज़।
  4. नमाज़े मगरिब : तीन फ़र्ज़ दो सुन्नतें। (नमाजे मगरिब पांच रकअतें हुई)
  5. नमाज़े इशा : चार फ़र्ज़ और दो सुन्नतें। (नमाज़े इशा छः रकअतें)
  6. नमाज़े वित्र : नमाज़े वित्र दरअस्ल रात की नमाज़ है, जो तहज्जुद के साथ मिलाकर पढ़ी जाती है। जो लोग रात को उठने के आदी न हों वह वित्र भी नमाज़े इशा के साथ ही पढ़ सकते हैं।

रसूलुल्लाह सल्ल० ने फ़रमाया :
“जिसे ख़तरा हो कि रात के आखिरी हिस्से में नहीं उठ सकेगा वह अव्वल शब ही वित्र पढ़ ले।” मुस्लिम, हदीस 755

वजाहत: कोई हज़रात यह ख्याल न करें कि हमने नमाज़ों की रकअतों को कम कर दिया है यानी फ़राइज़ और सुन्नतें मौअक्कदा गिन ली हैं और नफ़्ल छोड़ दिए हैं। मुसलमान भाइयों को मालूम होना चाहिए कि नवाफ़िल अपनी ख़ुशी और मर्जी की इबादत है।

रसूलुल्लाह सल्ल० ने किसी को पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया, इसलिए हमें कोई हक़ नहीं है कि हम अपने नफ़्लों को फर्ज़ो का ज़रूरी और लाज़मी हिस्सा बना डालें। फर्ज़ो के साथ आपकी नफ़्ल इबादत यानी सुन्नतें आ गई हैं जिनसे नमाज़ पूरी और मुकम्मल हो गई है।


7. नमाज़ का तरीका | Namaz ka Tarika in Hindi

नमाज़ का तरीका बहोत आसान है। नमाज़ या तो २ रक’आत की होती है, या , या ४ रक’आत की। एक रक’आत में एक क़याम, एक रुकू और दो सजदे होते है। नमाज़ का तरीका कुछ इस तरह है –

1. नमाज़ के लिए क़िबला रुख होकर नमाज़ के इरादे के साथ अल्लाहु अकबर कहें कर (तकबीर ) हाथ बांध लीजिये।

2. हाथ बाँधने के बाद सना पढ़िए। आपको जो भी सना आता हो वो सना आप पढ़ सकते है।

सना के मशहूर अल्फाज़ इस तरह है “सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबारका इस्मुका व त’आला जद्दुका वाला इलाहा गैरुका” (अर्थात: ए अल्लाह मैं तेरी पाकि बयां करता हु और तेरी तारीफ करता हूँ और तेरा नाम बरकतवाला है, बुलंद है तेरी शान और नहीं है माबूद तेरे सिवा कोई।)

3. इसके बाद त’अव्वुज पढ़े। त’अव्वुज के अल्फाज़ यह है “अउजू बिल्लाहि मिनश शैतान निर्रजिम. बिस्मिल्लाही र्रहमानिर रहीम।” 

4. इसके बाद सूरह फातिहा पढ़े।

5. सुरे फ़ातिहा के बाद कोई एक सूरा और पढ़े।

६. इसके बाद अल्लाहु अकबर (तकबीर) कह कर रुकू में जायें।

७. रुकू में जाने के बाद अल्लाह की तस्बीह बयान करे। आप जो अल्फाज़ में चाहे अल्लाह की तस्बीह बयान कर सकते हैं। तस्बीह के मशहूर अल्फाज़ यह है, “सुबहान रब्बी अल अज़ीम (अर्थात: पाक है मेरा रब अज़मत वाला)”

8. इसके बाद ‘समीअल्लाहु लिमन हमीदा’ कहते हुवे रुकू से खड़े हो जाये। (अर्थात: अल्लाह ने उसकी सुन ली जिसने उसकी तारीफ की, ऐ हमारे रब तेरे ही लिए तमाम तारीफे है।)

9. खड़े होने के बाद ‘रब्बना व लकल हम्द , हम्दन कसीरन मुबारकन फिही’ जरुर कहें।

10. इसके बाद अल्लाहु अकबर कहते हुवे सज्दे में जायें।

11. सज्दे में फिर से अल्लाह की तस्बीह बयान करे। आप जो अल्फाज़ में चाहे अल्लाह की तस्बीह बयान कर सकते हैं। तस्बीह के मशहूर अल्फाज़ यह है ‘सुबहान रब्बी अल आला (अर्थात: पाक है मेरा रब बड़ी शान वाला है)’

12. इसके बाद अल्लाहु अकबर कहते हुवे सज्दे से उठकर बैठे।

13. फिर दोबारा अल्लाहु अकबर कहते हुवे सज्दे में जायें।

14. सज्दे में फिर से अल्लाह की तस्बीह करे। आप जो अल्फाज़ में चाहे अल्लाह की तस्बीह बयान कर सकते हैं। या फिर वही कहें जो आम तौर पर सभी कहते हें, ‘सुबहान रब्बी अल आला’

यह हो गई नमाज़ की एक रक’आत। इसी तरह उठ कर आप दूसरी रक’अत पढ़ सकते हैं। दो रक’आत वाली नमाज़ में सज्दे के बाद तशहुद में बैठिये.

१५. तशहुद में बैठ कर सबसे पहले अत्तहिय्यात पढ़िए। अत्तहिय्यात के अल्लाह के रसूल ने सिखाये हुवे अल्फाज़ यह है,

‘अत्ताहियातु लिल्लाहि वस्सलवातु वत्तैयिबातू अस्सलामु अलैका अय्युहन नाबिय्यु रहमतुल्लाही व बरकताहू अस्सलामु अलैना व आला इबादिल्लाहिस सालिहीन अशहदु अल्ला इलाहा इल्ललाहू व अशहदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसुलहू’

१६. इसके बाद दरूद पढ़े। दरूद के अल्फाज़ यह है,

‘अल्लाहुम्मा सल्ली अला मुहम्मद व आला आली मुहम्मद कमा सल्लैता आला इब्राहिम वा आला आली इब्राहिमा इन्नका हमिदुम माजिद. अल्लाहुम्मा बारीक़ अला मुहम्मद व आला आली मुहम्मद कमा बारकता आला इब्राहिम वा आला आली इब्राहिमा इन्नका हमिदुम माजिद’

१७. इसके बाद दुआ ए मसुरा पढ़े। मतलब कोई भी ऐसी दुआ जो कुर’आनी सुरों से हट कर हो। वो दुआ कुर’आन में से ना हो। साफ साफ अल्फाज़ में आपको अपने लिए जो चाहिए वो मांग लीजिये। दुआ के अल्फाज़ मगर अरबी ही होने चाहिए।

१८. आज के मुस्लिम नौजवानों के हालत देखते हुवे उन्हें यह दुआ नमाज़ के आखिर में पढनी चाहिए। ‘अल्लाहुम्मा इन्नी अस’अलुका इलमन नाफिया व रिज्क़न तैय्यिबा व अमलम मुतक़ब्बला.’

– जिसका मतलब है, “ऐ अल्लाह मैं तुझसे इसे इल्म का सवाल करता हु जो फायदेमंद हो, ऐसे रिज्क़ का सवाल करता हु तो तय्यिब हो और ऐसे अमल का सवाल करता हु जिसे तू कबूल करे।”

१९. इस तरह से दो रक’अत नमाज़ पढ़ कर आप सलाम फेर सकते हैं। ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह’ कहकर आप सीधे और उलटे जानिब सलाम फेरें।

तीन रक’आत नमाज़ का तरीका:

दो रक’आत नमाज़ पढने के बाद तशहुद में सिर्फ अत्तहियात पढ़ ले और फिर तीसरे रक’आत पढ़ें के लिए उठ कर खड़े हो जाये. इस रक’अत में सिर्फ सुरे फातिहा पढ़े और रुकू के बाद दो सज्दे कर के तशहुद में बैठें. तशहुद उसी तरह पढ़े जैसे उपर सिखाया गया है और अत्ताहियात, दरूद और दुआ ए मसुरा पढने के बाद सलाम फेर दें।

चार रक’आत नमाज़ का तरीका:

दो रक’आत नमाज़ पढने के बाद तशहुद में सिर्फ अत्तहियात पढ़ ले और फिर तीसरे रक’अत पढने के लिए उठ कर खड़े हो जाये। इस रक’अत में सिर्फ सुरे फातिहा पढ़े और रुकू के बाद दो सज्दे कर के चौथी रक’आत के लिए खड़े हो जाये। चौथी रक’अत भी वैसे ही पढ़े जैसे तीसरी रक’आत पढ़ी गई है। चौथी रक’अत पढने के बाद तशहुद में बैठें। तशहुद उसी तरह पढ़े जैसे उपर सिखाया गया है और अत्ताहियात, दरूद और दुआ ए मसुरा पढने के बाद सलाम फेर दें।

औरत की नमाज़ का तरीका

क्या औरत की नमाज़ का तरीका मर्द से अलग है ?
याद रहे औरतों और मर्दो की नमाज़ में कोई फर्क नहीं। रसूलुल्लाह सल्ल० ने फ़रमाया : “नमाज़ इसी तरह पढ़ो जिस तरह तुम मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखते हो।’ [ सहीह बुख़ारी, हदीस 231]

यानी हूबहू मेरे तरीके के मुताबिक़ सब औरतें और सब मर्द नमाज़ पढ़ें। फिर अपनी तरफ़ से यह हुक्म लगाना कि औरतें सीने पर हाथ बांधे और मर्द ज़ेरे नाफ़ और औरतें सज्दा करते समय ज़मीन पर कोई और रूप इख्तियार करें और मर्द कोई और…यह दीन में मुदालिखत है।

याद रखें कि तकबीरे तहरीमा से शुरू करके “अस्सलामु आलैकुम व रहमतुल्लाहि” कहने तक औरतों और मर्दो के लिए एक हैबत (रूप) और एक ही शक्ल की नमाज़ है। सब का क़याम, रुकूअ, क़ौमा, सज्दा, जल्सा इस्तराहत, क़ाअदा और हर हर मक़ाम पर पढ़ने की पढ़ाई समान हैं। रसूलुल्लाह सल्ल० ने मर्द और औरत की नमाज़ के तरीके में कोई फर्क नहीं बताया।


8. नमाज़ की कुछ सूरह

यूँ तो क़ुरआन की हर सूरह नमाज़ में पढ़ी जा सकती है, लेकिन हम यहाँ सिर्फ 5 ही सूरतों का ज़िक्र कर रहे है जो बोहोत ही आसान है और अक्सर इन्हे नमाज़ में पढ़ा जाता है।

नमाज़ में पढ़ी जाने वाली कुछ सूरतें

सुरः फातिहा:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम (1) अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन (2) अर्रहमानिर्रहीम ( 3 ) मालिकि यौमिददीन (4) इय्याका नाबुदु व इय्याका नस्तईन (5) इहदिनस सिरातल मुस्तकीम (6) सिरातल्लज़ी-न अन्अम-त अलैहिम गैरिल मग्ज़बि अलैहिम वलज़्ज़ाल्लीन. (7) 

देखे : सूरह फातिहा तर्जुमा

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ مَٰلِكِ يَوْمِ ٱلدِّينِ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ ٱهْدِنَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلْمُسْتَقِيمَ صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا ٱلضَّآلِّينَ

तर्जुमा : अल्लाह के नाम से शुरु जो बड़ा महेरबान निहायत रहम करने वाला है (1) सब तारीफ अल्लाह ही के लिए है जो तमाम जहानों (सारी दुनिया) का पालने वाला है ( 2 ) बड़ा महेरबान निहायत रहम करने वाला है (3) बदले के दिन का मालिक है ( 4 ) हम सिर्फ तेरी ही इबादत करते हैं और सिर्फ तुझ ही से मदद चाहते हैं ( 5 ) हमें सीधी राह ( रास्ता ) दिखा (6) उन लोगों की राह जिन पर तूने इन्आम किया, उनकी नहीं जिन पर गज़ब (गुस्सा) किया गया और न गुमराहों की । (7)


सुरः इखलास:

कुलहु अल्लाहु अहद. अल्लाहु समद. लम यलिद वलम युअलद. वलम या कुल्लहू कुफुअन अहद।

देखे : सूरह इख्लास तर्जुमा

قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ ‏ اللَّهُ الصَّمَدُ ‎ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ ‎

तर्जुमा : आप कह दीजिए के वह अल्लाह एक है, अल्लाह बेनियाज़ (बेपरवा) है । न उससे कोई पैदा हुआ, और न वह किसी से पैदा किया गया और न उसका कोई हमसर (बराबर ) है ।


सुरः फ़लक:

कुल आउजू बिरब्बिल फ़लक. मिन शर्री मा खलक. व मिन शर्री ग़ासिक़ीन इज़ा वक़ब. व मिन शर्री नफ्फासाती फिल उक़द. व मिन शर्री हासिदीन इज़ा हसद। 

देखे : सूरह फलक तर्जुमा

قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ ‎﴿١﴾‏ مِن شَرِّ مَا خَلَقَ ‎﴿٢﴾‏ وَمِن شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ ‎﴿٣﴾‏ وَمِن شَرِّ النَّفَّاثَاتِ فِي الْعُقَدِ ‎﴿٤﴾‏ وَمِن شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ ‎﴿٥﴾‏

तर्जुमा : (ऐ रसूल) कह दो कि मैं सुबह के मालिक की (1) हर चीज़ की बुराई से जो उसने पैदा की पनाह माँगता हूँ (2) और अंधेरी रात की बुराई से जब उसका अंधेरा छा जाए (3) और गन्डों पर फूँकने वालियों की बुराई से (4) (जब फूँके) और हसद करने वाले की बुराई से (5)


सुरः नास:

कुल आउजू बिरब्बिन्नास. मलिकीन्नास. इलाहीन्नास. मिन शर्रिल वसवासील खन्नास. अल्लजी युवसविसू फी सुदुरीन्नास. मिनल जिन्नती वन्नास। 

देखे : सूरह नास तर्जुमा

قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ ‎﴿١﴾‏ مَلِكِ النَّاسِ ‎﴿٢﴾‏ إِلَٰهِ النَّاسِ ‎﴿٣﴾‏ مِن شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ ‎﴿٤﴾‏ الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ ‎﴿٥﴾‏ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ ‎﴿٦﴾‏

तर्जुमा : (ऐ रसूल) कह दो मैं लोगों के परवरदिगार (1) लोगों के बादशाह (2) लोगों के माबूद की (शैतानी) (3) वसवसे की बुराई से पनाह माँगता हूँ (4) जो (ख़ुदा के नाम से) पीछे हट जाता है जो लोगों के दिलों में वसवसे डाला करता है (5) जिन्नात में से ख्वाह आदमियों में से (6)


सुरः कौसर:

 इन्ना आतय ना कल कौसर, फसल्लि लिरब्बिका वन्हर, इन्ना शानिअका हुवल अब्तर।

देखे : सूरह कौसर तर्जुमा

إِنَّا أَعْطَيْنَاكَ الْكَوْثَرَ فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَانْحَرْ إِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْأَبْتَرُ ‎

तर्जुमा : (ऐ रसूल) हमनें तुमको को कौसर अता किया, तो तुम अपने परवरदिगार की नमाज़ पढ़ा करो और क़ुर्बानी दिया करो बेशक तुम्हारा दुश्मन बे औलाद रहेगा ।


सलाम फेरने के बाद की दुआएं

सलाम फेरने के बाद आप यह दुआएं पढ़ें।

  1. एक बार ऊँची आवाज़ में ‘अल्लाहु अकबर’ कहें
  2. फिर तीन बार ‘अस्तगफिरुल्लाह’ कहें
  3. एक बार ‘अल्लाहुम्मा अन्तास्सलाम व मिनकस्सलाम तबारकता या जल जलाली वल इकराम’ पढ़े।
  4. इसके बार ३३ मर्तबा सुबहान अल्लाह३३ मर्तबा अलहम्दु लिल्लाह और ३३ मर्तबा अल्लाहु अकबर पढ़ें।
  5. आखिर में एक बार ‘ला इलाहा इल्ललाहु वहदहू ला शरीका लहू लहुल मुल्कू वलहूल हम्दु वहुवा आला कुल्ली शैईन कदीर’ यह दुआ पढ़े.
  6. फिर एक बार आयतुल कुर्सी पढ़ लें।
देखे : आयतुल कुर्सी

اللَّـهُ لَا إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ ۚ لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ ۚ لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ مَن ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِندَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ ۚ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِّنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاءَ ۚ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ ۖ وَلَا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا ۚ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ

अल्लाहु ला इला-ह-इल्लाहू, अल्हय्युल कय्यूम ला तअवुजुहू सि-नतुंव वला नौम, लहू मा फिस्समावाति वमा फिल अर्ज, मन जल्लजी यश्फउ इन्दहू इल्ला बिइज़निह, यलमु मा बै-न औदीहिम वमा खल्फहुम, वला युहीत- न बिरौइम मिन इल्मिही इल्ला बिमा शा-अ, वसि-अ कुर्सिय्यु हुस्समावाति वल अर्ज, वला दुहू हिफ्जुमा, वहुवल अलिय्युल अज़ीम

तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं वह हमेशा जिंदा रहने वाला, सब को काइम रखने वाला है, उसको न ऊँघ आती है न नींद, आसमानों और ज़मीन की सब चीजें उसी की हैं, कौन है जो उस के पास किसी की शफाअत ( गुनाहों से माफी की सिफारिश) करे उसकी इजाज़त के बगैर, वह जानता है जो लोगों के सामने है और जो उनके पीछे है, और लोग उसके इल्म में से कुछ घेर नहीं सकते मगर जितना अल्लाह चाहे, उस की कुर्सी ने आसमानों और ज़मीन को अपनी वुस्अत (घेराव) में ले रखा है और उन की हिफाज़त उसे थकाती नहीं और वह बुलंद अज़मत ( बड़ाई) वाला है ।

फजीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया : जो शख़्स फर्ज़ नमाज़ के बाद आयतुल कुर्सी पढ़ ले तो उसे जन्नत में जाने से कोई चीज़ रोक नहीं सकती सिवाए मौत के।

ऊपर बताये गए सुरे इखलास, सुरे फ़लक और सुरे नास एक एक बार पढ़ लें।

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