हदीस की दुआएँ

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Hadees ki Duaayein

वज़ाहत : दुआ में पहले अल्लाह की हम्द (तारीफ) फिर दरुद पढ़कर जो माँगना हो माँगना चाहिए। 1 (सहीह)

इस्मे आज़म से दुआ:

اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْتَلْكَ بِأَنَّ لَكَ الْحَمْدَ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ الْمَنَّانُ بَدِيعُ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضَ، يَا ذَا الْجَلَالِ وَالْإِكْرَامِ ، يَا حَيُّ يَا قَيُّومُ  

अल्लाहुम्म इन्नी असअलु-क बिअन्न-लकल-हम्द, ला इलाह, इल्ला – अन्तल – मन्नान, बदीऊस्समावाति, वल्अर-ज़, या जलजलालि-वल्-इकराम, या हय्यु या कय्यूम 2 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से माँगता हूँ बेशक तमाम तारीफ तेरे लिए है, तेरे सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। तू ही एहसान करने वाला है आसमानों और ज़मीन का पैदा करने वाला है, ऐ बुजुर्गी वाले और बड़ाई वाले, ऐ ज़िन्दा रहने वाले और सब को थामने वाले।

फज़ीलत : एक आदमी ने नमाज़ पढ़कर यह दुआ की तो आप ﷺ ने फरमाया इस ने इस्मे आज़म से दुआ की और जब इस दुआ से अल्लाह को पुकारा जाए तो वह क़बूल करता है और जब इस दुआ से माँगा जाए तो वह देता है।

दुआ में दरुद:

फजीलत :

1. हज़रत उमर (रज़ि.) का कौल है, जिस दुआ में दरुद न पढ़ा जाए वह दुआ आसमान और ज़मीन के बीच लटकी रहती है। 3 (हसन)

2. उबै बिन कअब (रज़ि.) ने आप ﷺ से अर्ज़ किया के मैं दरुद ज़्यादा पढ़ता हूँ तो दुआ में कितना वक़्त दरुद के लिए मुकर्रर करूं ? आप ﷺ ने फरमाया जितना तुम चाहो । उन्हों ने कहा पाउ (1/4) हिस्सा ? फिर कहा आधा (1/2) हिस्सा ? फिर कहा पौना (3/4) हिस्सा मुकर्रर करूं ? आप ﷺ ने उन के हर सवाल पर यही कहा जितना तुम चाहो।

अगर ज़्यादा पढ़ोगे तो तुम्हारे लिए बेहतर है, तब उन्हों ने कहा मैं अपनी सारी दुआ का वक़्त दरुद के लिए मुकर्रर करूं ? आप ﷺ ने फरमाया जब तो यह तुम्हारे दुःखों के लिए काफी होगा और तुम्हारे गुनाह बख़्श दिए जाएँगे। 4 (हसन)

दिल को अल्लाह के दीन और उस की इताअत पर फेरने की दुआएँ:

يَا مُقَلِّبَ الْقُلُوبِ ثَبِّتُ قَلْبِي عَلَى دِينِكَ  

1. या मुकल्लिब कुलूब, सब्बित कल्बी अला दीनिक. 5 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ दिलों को पलटने वाले ! मेरा दिल अपने दीन पर साबित रख।

اللهم مُصَرِّفَ الْقُلُوبِ، صَرِّف قُلُوبَنَا عَلَى طَاعَتِكَ

2. अल्लाहुम्म मु-सर्रिफल कुलूब, सर्रिफ कुलूबना अला ता-अतिक. 6

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! दिलों को फेरने वाले हमारे दिलों को अपनी इताअत पर फेर दे।

वजाहत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया इंसानो के दिल रहमान की दो उंग्लीयों के बीच में हैं, जैसे एक दिल होता है, फिर अल्लाह उनको फेरता है, जिस तरह चाहता है, फिर आप ﷺ ने यही दुआ पढ़ी।

मग्फिरत, रहम, हिदायत, आफियत और रिज़्क माँगने की दुआ:

اللهُمَّ اغْفِرْ لِي ، وَارْحَمُنى، وَاهْدِنِي، وَعَافِنِي ، وَارْزُقْنى 

अल्लाहुम्मगफिरली, वर-हम्नी, वहदिनी, वआफिनी, वर-जुकनी. 7

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मेरी मग्फिरत फरमा और मुझ पर रहम फरमा और मुझे हिदायत दे और मुझे आफियत दे और मुझे रिज़्क़ दे।

फज़ीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया यह कलिमे दुनिया और आख़िरत के फाइदे जमा कर देंगे।

नफा देने वाला इल्म और इल्म में ज़्यादती की दूआ:

اللهم انْفَعْنى بِمَا عَلَّمْتَنِي ، وَعَلِّمُنى مَا يَنْفَعُنِي، وَ زِدْنِي عِلْماً  

अल्लाहुम्मन्फअनी, बिमा अल्-लम्तनी, व अल् लिमनी, मायफऊनी, वज़िदनी इल्मा 8 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! जो तूने मुझे इल्म दिया है, उस से मुझे नफा अता फरमा और मुझे वह इल्म अता फरमा जो मुझे नफा दे और मेरा इल्म ज्यादा कर।

नफा देने वाला इल्म, पाकीज़ह रिज़्क और कबूल होने वाला अमल माँगने की दुआ:

اللَّهُمَّ اِنّى اَسْتَلْكَ عِلماً نافعاً، ورِزْقاً طَيِّبَاً وَ عَمَلًا مُّتَقَبَّلاً  

अल्लाहुम्म इन्नी असअलु-क इल्मन् नाफिआ वरिज़्कन् तैयबा, व- अ-म-लम् मु-त-कब्बला. 9 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! बेशक मैं तुझ से नफा देने वाला इल्म और पाकीज़ह रिज़्क और कबूल होने वाला अमल का सवाल करता हूँ ।

वजाहत : रसूलुल्लाह ﷺ फजर नमाज़ से सलाम फेरने के बाद यह दुआ पढ़ा करते थे।

हिदायत, तकवा, पाकदामनी, मालदारी माँगने की दुआ:

اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْتَلْكَ الْهُدَى وَالتَّقَى وَالْعَفَافَ وَالْغِنَى 

अल्लाहुम्म इन्नी अस्अलुकल हुदा, वत्तुका, वल्फा-फ – वल् गिना. 10

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! बेशक मैं तुझ से हिदायत, तक्वा, पाकदामनी और मालदारी का सवाल करता हूँ।

आफियत (सलामती) माँगने की दुआ:

اللَّهُمَّ إِنِّي اسْتَلْكَ الْمُعَافَاةَ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ 

अल्लाहुम्म इन्नी अस्अलुकल मुआफा-त फिदुन्या वल आखि- रह. 11 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! बेशक मैं तुझ से दुनिया और आख़िरत में आफियत का सवाल करता हूँ। 

फज़ीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया इस दुआ से अफ्ज़ल दुआ नहीं।

जन्नत पाने और जहन्नम से बचने की दुआ : (तीन बार)

اللهم إنّي اَسْتَلْكَ الْجَنَّةَ ، وَاسْتَحِيرُ بِكَ مِنَ النَّارِ  

अल्लाहुम्म इन्नी असअलुकल जन्नत-व अस्तजीरू- बि-क मिनन्नार 12 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से जन्नत का सवाल करता हूँ और मैं तुझ से आग से पनाह चाहता हूँ ।

फज़ीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया जो अल्लाह से तीन बार जन्नत माँगे तो जन्नत अल्लाह से कहती है के ऐ अल्लाह ! इस को जन्नत में दाख़िल कर और जो तीन बार जहन्नम से पनाह माँगे तो जहन्नम कहती है के ऐ अल्लाह ! इस को जहन्नम से बचा।

वजाहत: हदीस में तीन बार जन्नत माँगने और तीन बार जहन्नम से पनाह माँगने की दुआ बताई गई है, लेकिन दुआ के अल्फाज़ नहीं बताए गए।

नबी ﷺ ने जो भलाई माँगी और जिस बुराई से पनाह माँगी उसकी दुआ:

اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْتَلْكَ مِنْ خَيْرِ مَا سَتَلَكَ عَبْدُكَ وَ نَبِيِّكَ، وَ اَعُوذُ بِكَ

مِنْ شَرِّ مَا عَاذَ بِهِ عَبْدُكَ وَ نَبِيُّكَ  

अल्लाहुम्म इन्नी असअलु-क मिन रि-मा-स-अ-ल-क अब्दु-क वनबिय्यु-क व अऊजुबि-क मिन्शरि मा आज – बहि अब्दु-क व नबिय्यु- क. 13 (सहीह) 

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! बेशक मैं तुझ से सवाल करता हूँ उस भलाई का जो तेरे बन्दे और तेरे नबी ने तुझ से माँगी है और मैं तुझ से उस बुराई से पनाह माँगता हूँ जिस से तेरे बन्दे और तेरे नबी ने तुझ से पनाह माँगी है। 

वज़ाहतः यह दुआ बहुत जामेअ है, जो एक लंबी दुआ से ली गई है।

जहन्नम के अज़ाब, कब्र के अज़ाब, दज्जाल के फितने और ज़िन्दगी और मौत के फितने से पनाह माँगने की दुआ:

اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ جَهَنَّمَ، وَ اَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ، وَاَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الْمَسِيحِ الدَّجَّالِ، وَ أَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الْمَحْيَا وَالْمَمَاتِ 

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजूबि-क-मिन अज़ाबि जहन्नम, व अऊजूबिक मिन अज़ाबिल कब्र व – अऊजुबि – क मिन् फित्नतिल मसीहिद्दज्जाल, व-अऊजुबि – क मिन् फित्नतिल महया वल् ममात. 14 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से अज़ाबे जहन्नम से पनाह चाहता हूँ और मैं तुझ से अज़ाबे कब्र से पनाह चाहता हूँ और मैं तुझ से मसीहिद दज्जाल के फितने से पनाह चाहता हूँ और मैं तुझ से ज़िन्दगी और मौत के फिल्ने से पनाह चाहता हूँ। 

बुरे अखलाक, बुरे आमाल और बुरी ख़ाहिशों से पनाह माँगने की दुआ:

اللَّهُمَّ اِنّى اَعُوذُ بِكَ مِنْ مُنْكَرَاتِ الاخْلَاقِ، وَالْأَعْمَالِ، وَالأهْوَاءِ

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबि-क मिम मुन्करातिल अख़्लाक, वल् अअमाल, वल् अहवा 15 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से बुरी आदतों, बुरे कामों और बुरी ख़्वाहिशों से पनाह चाहता हूँ।

बुढ़ापा, गम, आजिज़ी, सुस्ती, बख़ीली, बुज़दिली, कर्ज और लोगों के गल्बे से पनाह की दुआ:

اللهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْهَرَمِ، وَالْحُزْنِ، وَالْعَجْزِ، وَالْكَسَلِ، وَالْبُخْلِ، وَالْجُبْنِ، وَضَلَعِ الدِّينِ ، وَ غَلَبَةِ الرِّجَالِ 

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबि-क मिनल ह-र-मि, वल्हुज़नि, वल्अज्जि, वल्-क-स-लि, वल्बुलि, वल्जुब्नि, व-ज-ल इनि, व-ग-ल-बतिर रिजाल. 16 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! बेशक मैं तुझ से पनाह माँगता हूँ बुढ़ापे, गम, आजिज़ी, सुस्ती, बख़ीली, बुज़दिली (डरपोक) कर्ज के बोझ और लोगों के ग़ल्बे से। 

कर्ज, दुश्मन के गल्बे और दुश्मन की ख़ुशी से पनाह माँगने की दुआ:

اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ غَلَبَةِ الدِّينِ وَغَلَبَةِ الْعَدُوِّ وَشَمَاتَةِ الْأَعْدَاءِ

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबि-क-मिन ग-ल-ब-तिदैनि, व-गलबतिल अदुव्वि, व-शमाततिल अअदा. 17 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं कर्ज़ के गल्बे, दुश्मन के गल्बे और दुश्मनों की खुशी से तेरी पनाह चाहता हूँ।

बला, बदबख़्ती, बुरे फैसले, और दुश्मनों की ख़ुशी से पनाह माँगने की दुआ:

اللهُمَّ اِنّى اَعُوذُ بِكَ مِنْ جَهْدِ الْبَلاءِ، وَ دَرُكِ الشَّقَاءِ ، وَسُوءِ الْقَضَاءِ وَ شَمَاتَةِ الْاَعْدَاءِ 

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबिक, मिन् जहदिल बलाइ, व दरकिश्शिकाइ, व सूइल कज़ाइ, व शमाततिल अअदा. 18

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं आफत और बला की तकलीफ, बदबख़्ती की पकड़, बुरे फैसले और दुश्मनों की खुशी से तेरी पनाह चाहता हूँ।

मोहताजी, कमी, जिल्लत और जुल्म से पनाह माँगने की दुआ:

اللَّهُمَّ اِنّى اَعُوذُ بِكَ مِنَ الْفَقْرِ وَالْقِلَّةِ ، وَالذِلَّةِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ اَن أَظْلِمَ أَوْ أَظْلَمَ 

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबि-क मिनलफकरि वल्किल्लति वज्जिल्लति, व अऊजुबि-क-मिन अन् अज़लि-म- अव्-उजल-म. 19 (सहीह )

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं मोहताजी, कमी, ज़िल्लत से तेरी पनाह चाहता हूँ और मैं तुझ से पनाह माँगता हूँ इस से के मैं किसी पर जुल्म करूं या कोई मुझ पर जुल्म करें।

भूख और खियानत (बेईमानी) से पनाह माँगने की दुआ:

اَللّهُمَّ اِنّى اَعُوذُ بِكَ مِنَ الْجُوعِ فَإِنَّهُ بِفَسَ الضَّحِيعُ ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنَ الْخِيَانَةِ، فَإِنَّهَا بِمُسَتِ الْبِطَانَةُ

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबि-क मिनल जूइ फइन्नहु बिअ-सज-जजीउ, वअऊजुबि-क मिनल-खियानति, फइनहा- बिअ-सतिल बितानह 20 (हसन)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! भूख से मैं तेरी पनाह चाहता हूँ क्यूंकि वह बुरी साथी है और मैं ख़ियानत से तेरी पनाह चाहता हूँ क्यूंकि वह बुरी आदत है।

इल्म, दिल, नक्स की बुराई और गैर मकबूल दुआ से पनाह माँगने की दुआ:

اللهم إنّي اَعُوذُبِكَ مِنْ عِلْمٍ لَا يَنْفَعُ ، وَ مِنْ قَلْبٍ لَا يَخْشَعُ، وَمِنْ نَّفْسٍ لَا تَشْبَعُ، وَ مِنْ دَعْوَةٍ لَا يُسْتَجَابُ لَهَا 

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबि-क मिन्-इल्मिन ला यन्फउ, व मिन कल्बिन ला यख़्शउ, वमिन नफ़्सिन ला तश्बउ, वमिन-दअवतिन-ला युस्तजाबुलहा. 21

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं पनाह माँगता हूँ ऐसे इल्म से जो नफा न दे, और ऐसे दिल से जो न डरे, और ऐसे नफ्स से जो आसूदा न हो और ऐसी दुआ से जो कबूल न की जाए ।

वजाहत : यह दुआ एक लंबी दुआ से ली गई है।

कोढ़, पागलपन, जुज़ाम और बुरी बीमारीयों से पनाह माँगने की दुआ:

اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْبَرَصِ، وَالْحُنُونِ وَالْجُذَامِ، وَمِنْ سَيِّءِ الْأَسْقَامِ

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबि-क मिनल्ब-र-सि, वल्जुनूनि, वल्जुज़ामि-व-मिन-सैयिइल-अस्काम 22 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से कोढ़, पागलपन, जुज़ाम और बुरी बीमारीयों से पनाह चाहता हूँ।

बुरी मौत, मौत के वक़्त शैतान के उचक लेने से पनाह माँगने की दुआ:

اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْهَدْمِ ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنَ التَّرَدِى، وَأَعُوذُ بِكَ مِنَ الْغَرَقِ وَالْحَرَقِ وَالْهَرَمِ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ أَن يَتَخَبَّطَنِيَ الشَّيْطَانُ عِندَ الْمَوْتِ وَاَعُوذُ بِكَ أَنْ أَمُوتَ فِي سَبِيلِكَ مُدْبِراً، وَ أَعُوذُ بِكَ أَنْ أَمُوتَ

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबि-क मिनल्हदमि, व् अजुबि-क मिनत्त-रद्दी व अऊजुबि-क मिनल- ग-र-कि, वल्ह-र-कि, वल्ह-र-मि, वअऊजुबि-क मिन अै  य-त-ख़ब्ब-त-नि-यश्शैतानु इन्दल-मौति, वअऊजुबि-क अन्-अमू-त फी सबीलि-क मुदबिरन, व अजुबिक अन् अमू-त-लदीगा. 23 (सहीह)

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं दबकर मरने से तेरी पनाह चाहता हूँ और मैं गिरकर मरने से तेरी पनाह चाहता हूँ और मैं डूबकर मरने से, जलकर मरने और बहुत बुढ़ा होकर मरने से तेरी पनाह चाहता हूँ, और मैं तेरी पनाह चाहता हूँ के मुझे मौत के वक़्त शैतान उचक ले, और मैं तेरी राह में जिहाद से पीठ फेर कर भाग कर मरने से पनाह चाहता हूँ, और मैं ज़हरीले जानवर के काट कर मरने से तेरी पनाह चाहता हूँ। 

अल्लाह की नाराज़गी (नेअमत के दूर होने, आफियत के पलटने और अचानक आफत) से पनाह माँगने की दुआ:

اللهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ زَوَالِ نِعْمَتِكَ وَ تَحَوُّلِ عَافِيَتِكَ وَفُجَاءَةِ نِقْمَتِكَ وَجَمِيعِ سَخَطِكَ.

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजुबि-क, मिन्-जवालि नेअमति-क, व तहव्वुलि आफियति-क, वफुजाअति निकमतिक, व-जमीइ स-ख़-तिक 24

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से पनाह माँगता हूँ तेरी नेमत के ज़वाल से और तेरी आफियत पलटने से, और तेरी अचानक आफत से, और तेरी तमाम नाराज़गी से।

  1. सहीह तिर्मिज़ी लिल अल्बानी : किताबुल जुमुअह (1 /593) ↩︎
  2. सुनन अबीदाऊद : किताबुस्सलात (1495) ↩︎
  3. सहीह तिर्मिज़ी लिलअल्बानी : किताबुलवित्र ( 1/486) ↩︎
  4. सहीह तिर्मिज़ी लिलअल्लानी : किताबु सिफतिल कियामह (2/2457 ) ↩︎
  5. सहीह तिर्मिज़ी : किताबुल कद्र (2/2140) ↩︎
  6. सहीह मुस्लिम : किताबुल क़द्र (6/261) ↩︎
  7. सहीह मुस्लिम : किताबुज्ज़िक्रवददुआ ( 6 / 288) ↩︎
  8. सुनन इब्ने माजह: किताबुददुआ (3833) ↩︎
  9. सुनन इब्ने माजह: किताब इक़ामतिस्सलाह ( 925) ↩︎
  10. सहीह मुस्लिम : किताबुज्ज़िक्रवददुआ (6/302) ↩︎
  11. सुनन इब्ने माजह: किताबुददुआ (3851 ) ↩︎
  12. सुनन इब्ने माजह: किताबुज्जुहद (4340) ↩︎
  13. सुनन इब्ने माजह: किताबुददुआ (3846) ↩︎
  14. सुननुन्नसई : किताबुल इस्तिआज़ह (5514 ) ↩︎
  15. सहीह तिर्मिज़ी लिलअल्बानी : किताबुददअवात ( 3 / 3591) ↩︎
  16. सुननुन्नसई : किताबुल इस्तिआज़ह (5503 ) ↩︎
  17. सुननुन्नसई : किताबुल इस्तिआज़ह (5487 ) ↩︎
  18. सहीह बुख़ारी : किताबुददअवात (3 /533 ) ↩︎
  19. सुनन अबीदाऊद : किताबुस्सलात (1544) ↩︎
  20. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (1547 ) ↩︎
  21. सहीह मुस्लिम : किताबुज्ज़िक्रवददुआ (6/302) ↩︎
  22. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात ( 1554) ↩︎
  23. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात ( 1552 ) ↩︎
  24. सहीह मुस्लिम : किताबुज्ज़िक्रवददुआ (6/310) ↩︎