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आज का सबक

📖 आज का सबक – अरफ़ा के रोज़े की बेमिसाल फज़ीलत

🌄 ज़िलहिज्जा की 9वीं तारीख़ – यौम-ए-अरफ़ा:

👉 अरफ़ा का दिन हज का सबसे अहम दिन होता है, जब हाजी लोग मक्का के बाहर मैदान-ए-अरफ़ात में सुबह से लेकर सूरज डूबने तक ठहरते हैं, दुआ करते हैं और मग़फ़िरत मांगते हैं।

☝️ ग़ैर-हाजियों के लिए:

📿 रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

“मुझे अल्लाह से उम्मीद है कि अरफ़ा के दिन रोज़ा रखने से पिछले और अगले साल के गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।”
📚 तिरमिज़ी – हदीस: 749

✔️ यह हदीस ग़ैर-हाजियों के लिए है, क्योंकि…


🕋 हाजियों के लिए:

🧕🧔‍♂️ हज करने वालों को इस दिन रोज़ा रखने से रोक दिया गया है, क्योंकि:

इब्ने उमर (रज़ि.) कहते हैं:
“मैंने अल्लाह के रसूल ﷺ, अबू बक्र, उमर और उस्मान (रज़ि.) के साथ हज किया, लेकिन किसी ने भी अरफ़ा के दिन रोज़ा नहीं रखा।”
📚 सही रिवायतों से साबित

यह भी पढ़े: अशरा ज़ुल हज की फ़ज़ीलत ~ क़ुरानो सुन्नत की रौशनी में

💡 सीख (सबक):

🔹 ग़ैर-हाजियों को चाहिए कि वह अरफ़ा का रोज़ा रखें — यह दो सालों के गुनाहों की माफ़ी का ज़रिया है।

🔹 हाजियों के लिए यह दिन इबादत, दुआ और ठहराव के लिए है — रोज़ा न रखना ही सही अमल है।

आज का सबक – अरफ़ा का रोज़ा दो साल के गुनाहों की माफी, तिरमिज़ी हदीस

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